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Sunday, July 11, 2010

नई दिशायें

अंक-1 नई दिशायें


रविन्द्र कुमार द्विवेदी

वातावरण में शाम की कालिमा अपने पंख फैलाने को आतुर थी। पवन का मन्द-मन्द झोंका मौसम को सुहाना बना रहा था। कनाट प्लेस के चैराहे पर एक कोने के एकांत में खड़े हमीद और अकबर बातचीत में मशगूल थे। अकस्मात अकबर थोड़ा जोश में आते हुए बोला-

‘अगर तूने ऐसा कर दिखाया तो मैं तुझे मान जाऊंगा, अपना नाम बदल लूंगा।’ हमीद उसकी बात सुनकर खिलखिलाते हुए हँस पड़ता है। हमीद की हँसी अकबर को बहुत चुभती है। वो जोष में होष खोते हुए चीख पड़ता है-

‘चुप, चुप हो जा हमीद।’

हमीद उस पर व्यंग्य कसता है- ‘किस-किस को चुप करायेगा अकबर? तेरी ऐसी बचकानी बात जो भी सुनेगा, तुझ पर बेपनाह हँसेगा।’ हमीद की बात सुनते ही अकबर की आँखें हैरत से फैल जाती हैं। वो अपनी चीख दबाते हुए कहता है-

‘ मैंने ऐसा क्या कह दिया हमीद ’?

हमीद अकबर को गौर से देखते हुए बोला-

‘पहले ये बता, तू अपना कौन-सा नाम बदलने की बात कर रहा है? जल्दी बता।’

‘मेरा एक ही नाम है-अकबर!’

‘लेकिन ये तो पहले से ही बदला हुआ नाम है। फिर इस नाम पर इतना घमण्ड क्यों दिखा रहा है। हुँह........ बदले हुए नाम पर मर्दानगी। अरे, ये मर्दानगी नहीं, नपुंसकता है।’ कहते ही हमीद उसे नफरत से देखता है। अकबर का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है। वो गुस्से में काँपते हुए कहता है-

‘मेरे जमीर पर तोहमत मत लगा हमीद, वरना तेरे हक में अच्छा नहीं होगा।’

‘क्या अच्छा नहीं होगा? क्या पहले तेरा नाम राम आसरे नहीं था।?’ हमीद कटाक्ष करते हुए बोला।

‘था, लेकिन तब मैं सनातनी था। अब सच्चा मुसलमान हूँ। खुदा की इबादत करता हूं।’ अकबर बेबाकी से बोला। हमीद के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल जाती है। वो फिर व्यंग्य कसता है- ‘यानी नाम के साथ मजहब और चेहरा भी बदल जाता है। मूर्तिपूजक, मूर्तिभंजक बन गया। राम आसरे के नाम से मूंछे ऊंची रखने वाला मूंछे नीची करा बैठा। अरे, जो कौम का न रहा, जिसमें वो पैदा हुआ, तो हमारे मजहब से क्या वफादारी दिखायेगा।’

हमीद की बात सुनकर अकबर के मन में तूफान मच जाता है। यह क्या सुन लिया उसनें। वो सच्चे मन से इस्लाम में दीक्षित हुआ मिशनरी वालों ने भरोसा दिलाया कि उनक मजहब में सबको बराबरी का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन यह क्या था? यहाँ तो उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। क्या यही है बराबरी का दर्जा?

हमीद ने मानो उसके मन के तूफान को समझ लिया। उसने बड़ी कुटिलता से कहा- हाँ, यही है बराबरी का दर्जा। गैर इस्लामियों को इस्लाम में लाने के बाद सबको तुम्हारी जैसा बराबरी का दर्जा दिया जाता है।’

‘तो फिर वो सब्जबाग, जो मुझे दिखाये गये थे?’ अकबर हकबका कर बोला। हमीद पहले से भी ज्यादा कुटिलता से बोला-

‘सब्जबाग न दिखाये जाते तो तुम हमारा मजहब कबूल नहीं करते। अब समझे।’

‘यानी मेरे साथ धोखा हुआ।’

‘तुम्हारे लिये धोखा, लेकिन हमारे लिए मजहब की खिदमत’ हमीद ने फख्र्र से कहा। अकबर के चेहरे पर आते-जाते भावों का जलजला उमड़ेने लगा। उसने मन में सोचा-

‘इतना बड़ा धोखा। हमारे पुरखे सच ही कहा करते थे। यह सब विधर्मी हैं। इन पर कभी विश्वाश नहीं करना चाहिये, लेकिन मैं पुरखों के ये वचन भूल गया। वरना इन जालिमों के हाथ हपना नाम और धर्म कभी न गँवाता।’ हमीद अकबर के चेहरे को पढ़ते हुए बोला-

‘अब सोचकर क्या फायदा अकबर। सोचना था तो हमारा मजहब कबूल करने से पहले सोचते’ अकबर उसकी बात सुनकर गंभीर स्वर में कहता है-

‘सच कहा हमीद, बिलकुल सच कहा। लेकिन तुमने अपने मजहब की खिदमत की जो बात कही, वो मेरी समझ में नहीं आई।

‘तुम अपने पुरखों की बात भूल सकते हो अकबर, लेकिन हम कभी नहीं भूलते।’ हमीद जोशीले स्वर में बोला-

‘जब हिन्दुस्तान आजाद हुआ था तो हमारे पुरखों ने कहा था-‘लड़कर लिया है पाकिस्तान- हँस कर लेंगे हिन्दुस्तान।’

हमीद की बात सुनकर अकबर चैंका उसके मुँह से अकस्मात निकला- ‘क्या?’

हमीद मुस्कुराया और बोला- ‘इसी लिए तो, हम तुम जैसे गैर इस्लामियों पर डोरे डालते हैं। लोभ-लालच देते हैं और अपने मजहब में शामिल कर लेते हैं। हम चाहते हैं कि हिन्द में हमारे मजहब के लोगों की आबादी सनातनियों से अधिक हो जाये। जानते हो न अकबर, तब क्या होगा?’

अकबर का चेहरा हमीद की बातें सुनकर एकदम निस्तेज हो गया। उसे अपने उपर गुस्सा आने लगा कि वो उनके बहकावे में आया ही क्यों? पर अब क्या हो सकता था। सनातनियों ने उसे विधर्मी घोषित करके हमेषा के लिए उससे नाता तोड़ लिया था। इन विधर्मियों के साथ घुटते दम से वो कब तक जी पायेगा? आह! ये उससे कैसा पाप हो गया? अकबर की आत्मा उसे कचोटती हुई लहूलुहान करने लगी। अन्त में अकबर हिम्मत जुटाते हुए बोला-

‘क्या होगा?’

‘हम हिन्दुस्तान में इस्लामी हुकूमत कायम कर देंगे। फिर दिल्ली से लाहौर तक हमारे मजहब की हुकूमत होगी। हिन्द की धरती पर वो ही रहेगा, जो खुदा की इबादत करेगा।’ कहते-कहते हमीद कहकहा लगाने लगा। उसके कहकहे अकबर के कानों में शीषा बनकर पिघलने लगे। उसे लगा कि एक साथ सैकड़ों हमीद कहकहा लगा रहे हैं। उसे अपने कानों में पिघलता शीषा सहन नहीं हुआ। वो अपने दोनों कानों पर हाथ रखकर चीख उठा-

‘बस करो हमीद, बस करो। वरना मैं इसी समय मैं तुम्हारा कत्ल कर दूंगा।’

अकबर के चीखते ही हमीद के कहकहे रूक गये। एकदम सन्नाटा छा गया और घिर आई शाम के सन्नाटे में विलीन होकर वातावरण को बड़ा भयानक बना दिया। अकबर ने अपने कान से हाथ हटाये और हमीद की ओर देखा। हमीद वहाँ से जा चुका था। अकबर की आँखों में आँसू भर आये। उसे सनातन धर्म से कटने पर आत्मग्लानि होने लगी। शायद वो आँसू पष्चाताप के आँसू थे। वो सनातनी होना चाहता था, पर क्या सनातनी विधर्मी को पुनः अपनायेंगे? अकबर एक विचित्र चैराहे पर खड़ा था। चैराहे के सारे रास्ते अंधकार में डूबे हुये थे। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वो किस रास्ते पर आगे बढ़े। तभी एक रास्ते से उम्मीद की एक किरण स्वयं उसके पास चलकर पहुँची। उम्मीद की वो किरण दिल्ली उच्च न्यायालय की एक अधिवक्ता संजया शर्मा थी। वो अकबर के पास पहुंची और बोली- ‘मैंने तुम दोनों की सारी बातें सुनी। मेरा विचार है कि तुम पुनः पुराने घर जाने का मन बना चुके हो।’

अकबर ने उस अप्रतिम देवी स्वरूपा को एकटक देखते हुए ‘हाँ’ में गर्दन हिलायी।

‘मार्ग नहीं सुझाई दे रहा।’ वो फिर बोली-

उसकी वाणी से मंत्रमुग्ध अकबर के मुंह से बड़ी मुष्किल से निकला-हाँ.....।

‘मैं जिस रास्ते से आई हूं, उसी रास्ते से आगे बढ़ जाओ’

‘वो रास्ता तो स्वामी नारायण मन्दिर जाता है।’ अकबर बोला।

‘हाँ, मन्दिर के पास हिन्दू महासभा भवन है। भवन में स्वामी चक्रपाणि देव जी महाराज से मिलना। वही तुम्हारा मार्गदर्षन करेंगे। तुम्हारी हर समस्या, हर शंका समाधान है उनके पास। बड़ा ही दिव्य तेज है उनके मुखमण्डल पर। हमस सब उन्हें श्रद्धा और आदर से ‘स्वामी जी’ कहते हैं। अगर उन्हें प्रसन्न करना है तो जाते ही ‘जय हिन्दू राष्ट्र’ के उद्घोष के साथ श्रद्धा से उनके चरण स्पर्ष कना। निष्चित रूप से वो तुम्हारा कल्यांण करेंगे।’

अकबर मानो सोते से जागा और बोला ‘षायद मैंने आपका चेहरा पहले कहीं देखा है। पर कहाँ? याद नहीं आ रहा।’

अकबर की बात पर मुस्कुराते हुए बोली-‘जरूर किसी कोर्ट कचहरी में देखा होगा। मैं एक वकील हूँ।’

वकील सुनकर अकबर चैंका।

‘त-तुम वकील हो। वही वकील जो फोकस चैनल पर फोकस काउंसिल में टी.वी. पर आती है।

‘ओह, तो तुमने मुझे टी.वी. पर देखा है। हाँ, मैं वही हूँ, एडवोकेट संजया।’ संजया ने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड निकालकर देते हुए कहा-

‘ये लो, कभी जरूरत पड़े तो मिल सकते हो। और हाँ, और स्वामी जी को मेरा प्रणाम जरूर कहना।’

‘जी, जरूर कह दूंगा।’ अकबर गर्दन हिलाते हुए बोला। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया देखे बिना वो जा चुकी थी। अकबर स्वामी नारायण मन्दिर के रास्ते पर चल पड़ा।

बीस मिनट बाद अकबर स्वामी जी के सामने विराजमान था। स्वामीजी बड़े ही ध्यानपूर्वक अकबर की बात ध्यानपूर्वक सुनी और मुस्कुराते हुए बोले-

‘सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नही कहते बच्चा। तुम जीवन के मार्ग पर राह भटक गये थे। लेकिन तुम अब पुनः सही मार्ग पर आ गये हो। तुम्हारा सनातन समाज में स्वागत है। हम तुम्हारा शुद्धिकरण करेंगे।’

‘सच स्वामी जी मैं फिर से सनातनी होने का गौरव पा सकूंगा।’ अकबर खुष होते हुए बोला।

‘अवष्य, तुम्हारा नाम क्या है बच्चा।’ स्वामी जी की अमृत वाणी बरसने लगी अकबर उसमें भीगने लगा। उसके होंठ बरबस ही फड़फड़ा उठे।

‘अ......कबर’

‘भूल जाओ इस नाम को’ ये तुम्हारा छद्म नाम है। हम तुमसे तुम्हारा सनातनी नाम पूछ रहे हैं।’

राम आसरे बाल्मीकि..........

‘ओह... तो तुम बाल्मीकि समाज के गौरव हो।’

‘ज........जी स्वामी जी... ल...लेकिन मैं मार्ग भटक गया था।’

दोनों के बीच वार्तालाप चलता रहा। वार्तालाप के बाद स्वामी जी ने उससे ग्यारह बार गायत्री मंत्र का जाप करवाया। उस पर गंगा जल छिड़क कर उसे शुद्ध किया। अन्य कई वैदिक क्रियाओं के पष्चात अकबर फिर से सनातनी बन गया। उसकी जिन्दगी में फिर से सवेरा हो गया। उसके जीवन को नई दिअंक-1 नई दिशायें


रविन्द्र कुमार द्विवेदी

वातावरण में शाम की कालिमा अपने पंख फैलाने को आतुर थी। पवन का मन्द-मन्द झोंका मौसम को सुहाना बना रहा था। कनाॅट प्लेस के चैराहे पर एक कोने के एकांत में खड़े हमीद और अकबर बातचीत में मशगूल थे। अकस्मात अकबर थोड़ा जोश में आते हुए बोला-

‘अगर तूने ऐसा कर दिखाया तो मैं तुझे मान जाऊंगा, अपना नाम बदल लूंगा।’ हमीद उसकी बात सुनकर खिलखिलाते हुए हँस पड़ता है। हमीद की हँसी अकबर को बहुत चुभती है। वो जोष में होष खोते हुए चीख पड़ता है-

‘चुप, चुप हो जा हमीद।’

हमीद उस पर व्यंग्य कसता है- ‘किस-किस को चुप करायेगा अकबर? तेरी ऐसी बचकानी बात जो भी सुनेगा, तुझ पर बेपनाह हँसेगा।’ हमीद की बात सुनते ही अकबर की आँखें हैरत से फैल जाती हैं। वो अपनी चीख दबाते हुए कहता है-

‘ मैंने ऐसा क्या कह दिया हमीद ’?

हमीद अकबर को गौर से देखते हुए बोला-

‘पहले ये बता, तू अपना कौन-सा नाम बदलने की बात कर रहा है? जल्दी बता।’

‘मेरा एक ही नाम है-अकबर!’

‘लेकिन ये तो पहले से ही बदला हुआ नाम है। फिर इस नाम पर इतना घमण्ड क्यों दिखा रहा है। हुँह........ बदले हुए नाम पर मर्दानगी। अरे, ये मर्दानगी नहीं, नपुंसकता है।’ कहते ही हमीद उसे नफरत से देखता है। अकबर का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है। वो गुस्से में काँपते हुए कहता है-

‘मेरे जमीर पर तोहमत मत लगा हमीद, वरना तेरे हक में अच्छा नहीं होगा।’

‘क्या अच्छा नहीं होगा? क्या पहले तेरा नाम राम आसरे नहीं था।?’ हमीद कटाक्ष करते हुए बोला।

‘था, लेकिन तब मैं सनातनी था। अब सच्चा मुसलमान हूँ। खुदा की इबादत करता हूं।’ अकबर बेबाकी से बोला। हमीद के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल जाती है। वो फिर व्यंग्य कसता है- ‘यानी नाम के साथ मजहब और चेहरा भी बदल जाता है। मूर्तिपूजक, मूर्तिभंजक बन गया। राम आसरे के नाम से मूंछे ऊंची रखने वाला मूंछे नीची करा बैठा। अरे, जो कौम का न रहा, जिसमें वो पैदा हुआ, तो हमारे मजहब से क्या वफादारी दिखायेगा।’

हमीद की बात सुनकर अकबर के मन में तूफान मच जाता है। यह क्या सुन लिया उसनें। वो सच्चे मन से इस्लाम में दीक्षित हुआ मिशनरी वालों ने भरोसा दिलाया कि उनक मजहब में सबको बराबरी का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन यह क्या था? यहाँ तो उसका उपहास उड़ाया जा रहा है। क्या यही है बराबरी का दर्जा?

हमीद ने मानो उसके मन के तूफान को समझ लिया। उसने बड़ी कुटिलता से कहा- हाँ, यही है बराबरी का दर्जा। गैर इस्लामियों को इस्लाम में लाने के बाद सबको तुम्हारी जैसा बराबरी का दर्जा दिया जाता है।’

‘तो फिर वो सब्जबाग, जो मुझे दिखाये गये थे?’ अकबर हकबका कर बोला। हमीद पहले से भी ज्यादा कुटिलता से बोला-

‘सब्जबाग न दिखाये जाते तो तुम हमारा मजहब कबूल नहीं करते। अब समझे।’

‘यानी मेरे साथ धोखा हुआ।’

‘तुम्हारे लिये धोखा, लेकिन हमारे लिए मजहब की खिदमत’ हमीद ने फख्र्र से कहा। अकबर के चेहरे पर आते-जाते भावों का जलजला उमड़ेने लगा। उसने मन में सोचा-

‘इतना बड़ा धोखा। हमारे पुरखे सच ही कहा करते थे। यह सब विधर्मी हैं। इन पर कभी विश्वाश नहीं करना चाहिये, लेकिन मैं पुरखों के ये वचन भूल गया। वरना इन जालिमों के हाथ हपना नाम और धर्म कभी न गँवाता।’ हमीद अकबर के चेहरे को पढ़ते हुए बोला-

‘अब सोचकर क्या फायदा अकबर। सोचना था तो हमारा मजहब कबूल करने से पहले सोचते’ अकबर उसकी बात सुनकर गंभीर स्वर में कहता है-

‘सच कहा हमीद, बिलकुल सच कहा। लेकिन तुमने अपने मजहब की खिदमत की जो बात कही, वो मेरी समझ में नहीं आई।

‘तुम अपने पुरखों की बात भूल सकते हो अकबर, लेकिन हम कभी नहीं भूलते।’ हमीद जोशीले स्वर में बोला-

‘जब हिन्दुस्तान आजाद हुआ था तो हमारे पुरखों ने कहा था-‘लड़कर लिया है पाकिस्तान- हँस कर लेंगे हिन्दुस्तान।’

हमीद की बात सुनकर अकबर चैंका उसके मुँह से अकस्मात निकला- ‘क्या?’

हमीद मुस्कुराया और बोला- ‘इसी लिए तो, हम तुम जैसे गैर इस्लामियों पर डोरे डालते हैं। लोभ-लालच देते हैं और अपने मजहब में शामिल कर लेते हैं। हम चाहते हैं कि हिन्द में हमारे मजहब के लोगों की आबादी सनातनियों से अधिक हो जाये। जानते हो न अकबर, तब क्या होगा?’

अकबर का चेहरा हमीद की बातें सुनकर एकदम निस्तेज हो गया। उसे अपने उपर गुस्सा आने लगा कि वो उनके बहकावे में आया ही क्यों? पर अब क्या हो सकता था। सनातनियों ने उसे विधर्मी घोषित करके हमेषा के लिए उससे नाता तोड़ लिया था। इन विधर्मियों के साथ घुटते दम से वो कब तक जी पायेगा? आह! ये उससे कैसा पाप हो गया? अकबर की आत्मा उसे कचोटती हुई लहूलुहान करने लगी। अन्त में अकबर हिम्मत जुटाते हुए बोला-

‘क्या होगा?’

‘हम हिन्दुस्तान में इस्लामी हुकूमत कायम कर देंगे। फिर दिल्ली से लाहौर तक हमारे मजहब की हुकूमत होगी। हिन्द की धरती पर वो ही रहेगा, जो खुदा की इबादत करेगा।’ कहते-कहते हमीद कहकहा लगाने लगा। उसके कहकहे अकबर के कानों में शीषा बनकर पिघलने लगे। उसे लगा कि एक साथ सैकड़ों हमीद कहकहा लगा रहे हैं। उसे अपने कानों में पिघलता शीषा सहन नहीं हुआ। वो अपने दोनों कानों पर हाथ रखकर चीख उठा-

‘बस करो हमीद, बस करो। वरना मैं इसी समय मैं तुम्हारा कत्ल कर दूंगा।’

अकबर के चीखते ही हमीद के कहकहे रूक गये। एकदम सन्नाटा छा गया और घिर आई शाम के सन्नाटे में विलीन होकर वातावरण को बड़ा भयानक बना दिया। अकबर ने अपने कान से हाथ हटाये और हमीद की ओर देखा। हमीद वहाँ से जा चुका था। अकबर की आँखों में आँसू भर आये। उसे सनातन धर्म से कटने पर आत्मग्लानि होने लगी। शायद वो आँसू पष्चाताप के आँसू थे। वो सनातनी होना चाहता था, पर क्या सनातनी विधर्मी को पुनः अपनायेंगे? अकबर एक विचित्र चैराहे पर खड़ा था। चैराहे के सारे रास्ते अंधकार में डूबे हुये थे। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वो किस रास्ते पर आगे बढ़े। तभी एक रास्ते से उम्मीद की एक किरण स्वयं उसके पास चलकर पहुँची। उम्मीद की वो किरण दिल्ली उच्च न्यायालय की एक अधिवक्ता संजया शर्मा थी। वो अकबर के पास पहुंची और बोली- ‘मैंने तुम दोनों की सारी बातें सुनी। मेरा विचार है कि तुम पुनः पुराने घर जाने का मन बना चुके हो।’

अकबर ने उस अप्रतिम देवी स्वरूपा को एकटक देखते हुए ‘हाँ’ में गर्दन हिलायी।

‘मार्ग नहीं सुझाई दे रहा।’ वो फिर बोली-

उसकी वाणी से मंत्रमुग्ध अकबर के मुंह से बड़ी मुष्किल से निकला-हाँ.....।

‘मैं जिस रास्ते से आई हूं, उसी रास्ते से आगे बढ़ जाओ’

‘वो रास्ता तो स्वामी नारायण मन्दिर जाता है।’ अकबर बोला।

‘हाँ, मन्दिर के पास हिन्दू महासभा भवन है। भवन में स्वामी चक्रपाणि देव जी महाराज से मिलना। वही तुम्हारा मार्गदर्षन करेंगे। तुम्हारी हर समस्या, हर शंका समाधान है उनके पास। बड़ा ही दिव्य तेज है उनके मुखमण्डल पर। हमस सब उन्हें श्रद्धा और आदर से ‘स्वामी जी’ कहते हैं। अगर उन्हें प्रसन्न करना है तो जाते ही ‘जय हिन्दू राष्ट्र’ के उद्घोष के साथ श्रद्धा से उनके चरण स्पर्ष कना। निष्चित रूप से वो तुम्हारा कल्यांण करेंगे।’

अकबर मानो सोते से जागा और बोला ‘षायद मैंने आपका चेहरा पहले कहीं देखा है। पर कहाँ? याद नहीं आ रहा।’

अकबर की बात पर मुस्कुराते हुए बोली-‘जरूर किसी कोर्ट कचहरी में देखा होगा। मैं एक वकील हूँ।’

वकील सुनकर अकबर चैंका।

‘त-तुम वकील हो। वही वकील जो फोकस चैनल पर फोकस काउंसिल में टी.वी. पर आती है।

‘ओह, तो तुमने मुझे टी.वी. पर देखा है। हाँ, मैं वही हूँ, एडवोकेट संजया।’ संजया ने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड निकालकर देते हुए कहा-

‘ये लो, कभी जरूरत पड़े तो मिल सकते हो। और हाँ, और स्वामी जी को मेरा प्रणाम जरूर कहना।’

‘जी, जरूर कह दूंगा।’ अकबर गर्दन हिलाते हुए बोला। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया देखे बिना वो जा चुकी थी। अकबर स्वामी नारायण मन्दिर के रास्ते पर चल पड़ा।

बीस मिनट बाद अकबर स्वामी जी के सामने विराजमान था। स्वामीजी बड़े ही ध्यानपूर्वक अकबर की बात ध्यानपूर्वक सुनी और मुस्कुराते हुए बोले-

‘सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नही कहते बच्चा। तुम जीवन के मार्ग पर राह भटक गये थे। लेकिन तुम अब पुनः सही मार्ग पर आ गये हो। तुम्हारा सनातन समाज में स्वागत है। हम तुम्हारा शुद्धिकरण करेंगे।’

‘सच स्वामी जी मैं फिर से सनातनी होने का गौरव पा सकूंगा।’ अकबर खुष होते हुए बोला।

‘अवष्य, तुम्हारा नाम क्या है बच्चा।’ स्वामी जी की अमृत वाणी बरसने लगी अकबर उसमें भीगने लगा। उसके होंठ बरबस ही फड़फड़ा उठे।

‘अ......कबर’

‘भूल जाओ इस नाम को’ ये तुम्हारा छद्म नाम है। हम तुमसे तुम्हारा सनातनी नाम पूछ रहे हैं।’

राम आसरे बाल्मीकि..........

‘ओह... तो तुम बाल्मीकि समाज के गौरव हो।’

‘ज........जी स्वामी जी... ल...लेकिन मैं मार्ग भटक गया था।’

दोनों के बीच वार्तालाप चलता रहा। वार्तालाप के बाद स्वामी जी ने उससे ग्यारह बार गायत्री मंत्र का जाप करवाया। उस पर गंगा जल छिड़क कर उसे शुद्ध किया। अन्य कई वैदिक क्रियाओं के पष्चात अकबर फिर से सनातनी बन गया। उसकी जिन्दगी में फिर से सवेरा हो गया। उसके जीवन को नई दिशा मिल गई।

गतांक से आगे --------

3 comments:

  1. "जीत का कोई विकल्प नहीं होता"
    साश्वत सत्य

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  2. बंधू, बहुत अच्छा प्रयास है. हिन्दू जन जागरण का यह भागीरथ कार्य जारी रखे. कृपया 'आह्वान'AHWAN (Association of Hindu Writers And Nationalist) से जुडे. इसका लिंक मेरे ब्लोग पार दिया हुआ है- www.secular-drama.blogspot.com

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  3. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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