रविन्द्र द्विवेदी
पाकिस्तान में चुनाव परिणाम सारी दुनिया के सामने है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनकर उभरा और सत्ता की बागडोर इसी दल के हाथ में है। नवाज शरीफ ने पाकिस्तान में तीसरी बार प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभाला है। नवाज शरीफ पर पाकिस्तानी जनता का भरोसा पाकिस्तान के सरपरस्त अमेरिका के लिये चुनौती है। इस चुनौती को अमेरिका किस रूप में लेगा, यह समय के गर्भ में है। फिलहाल पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है, जब लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार के हाथों से लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित राजनीतिक दल को सत्ता हस्तांतरण हुआ। यह भी पहली बार हुआ कि पाकिस्तान में किसी निर्वाचित सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इससे पहले पाकिस्तान में निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार को वहां के सैन्य अधिकारी अपदस्थ कर तानाशाही शासन चलाते रहते हैं। अन्तिम बार सन् 1999 में नवाज शरीफ की निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार को फौजी जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्ता से बेदखल कर खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। पाकिस्तानी जनता ने नवाज शरीफ को पुन: सत्ता की चाबी सौंपकर स्पष्ट संदेश दिया कि शासन की इसी लोकतांत्रिक प्रणाली से पाकिस्तान का उत्थान और विकास संभव है। पाकिस्तान की जनता ने तालिबानी आतंकवादियों की धमकियों और बम विस्फोटों से भयभीत हुये बिना जिस तरह बैलेट से बुलेट का जवाब दिया, वो उनके साहस का ज्वलन्त प्रमाण है। पाकिस्तान की जनता को हार्दिक बधाई। पाकिस्तान में लोकतंत्र की मजबूती अमेरिका के लिये चुनौती दो कारणों से है। पहला कारण यह कि सत्ता से सेना को बेदखल किये जाने से पूर्व अपने देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से नवाज शरीफ अमेरिका की यात्रा पर गये थे तो वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने व्हाइट हाउस में उनसे आधिकारिक मुलाकात करना नहीं समझा था। नवाज शरीफ को अपना अपमान आज भी याद होगा और निश्चित रूप से वो अपने अपमान का अमेरिका से बदला लेने की ख्वाहिश रखते होंगे। इस तथ्य को अमेरिका भी भलीभांतति समझ रहा है। दूसरा कारण निवर्तमान पाकिस्तार सरकार (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) के कार्यकाल में जिस तरह पाकिस्तान पर अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हुआ, पाकिस्तान की जनता उससे बेहद नाराज थी। यह नाराजगी ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को सत्ता से बेदखल करने का असली कारण बनीं। भ्रष्टाचार व अन्य मुद्दों को पी.पी.पी. सरकार के पतन में महत्वपूर्ण कारक माना गया। नवाज शरीफ की सत्ता में वापसी की चुनौती में निपटाना अमेरिका के लिये आसान नही होगा।
पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी का भारत सरकार ने स्वागत किया है। स्वागत करना गलत नही है, किन्तु नवाज शरीफ पर आंख मूंदकर विश्वास करना अपने आपको और राष्ट्र को भ्रमित करना है। भारत सरकार ने जिस तत्परता से नवाज शरीफ को भारत आने का न्यौता दिया, उससे मैं तनिक भी सहमत नही हूं। जो भी भारतीय नागरिक अपना और अपने राष्ट्र का हित चाहता है, उसे भी भारत सरकार के इस निर्णय से सहमत नही होना चाहिये। ये वही नवाज शरीफ हैं, जिनके शासन में हमें कारगिल युद्ध का घाव मिला। ये वही नवाज शरीफ हैं, जिनके कार्यकाल में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के बाद वहां की मीनार-ए-पाकिस्तान को पानी से धोया गया, जो भारत के प्रधानमंत्री का सरासर अपमान था। ये वही नवाज शरीफ हैं, जिन्होंने कश्मीर समस्या पर हमेशा विवाद पैदा कर भारत-पाक शान्ति वार्ता को कभी परवान नही चढ़ने दिया। नवाज शरीफ भारत के शत्रु राष्ट्र के प्रधानमंत्री बनें हैं। उन्हें भारत में आमंत्रित करने का भारत सरकार का निर्णय राष्ट्र के समस्त राष्ट्रवादी नागरिकों की मूल भावना के विरूद्ध है। हाल ही में पाकिस्तान की जेल में भारतीय कैदी सरबजीत की नृशंस हत्या जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हमले में पांच भारतीय जवानों की शहादत, चमेल सिंह छत-विछत शव, जनवरी 2013 में पाकिस्तान सैनिकों द्वारा दो भारतीय सैनिकों का गला काटना और एक का गर्दन अपने साथ ले जाना, हैदराबाद बम विस्फोट और पाकिस्तान के गृहमंत्री का भारत यात्रा पर अयोध्या में कथित ढांचे के विध्वंश को आतंकी कार्यवाही बताना साबित करता है कि पाकिस्तान भरोसे के काबिल नही है। जिस पर भरोसा न हो, उसे अतिथि बनाकर अपने देश में बुलाना किसी भी दृष्टिकोंण से सही कदम नही कहा जा सकता। क्या भारत सरकार अपने निर्णय पर पुनर्विचारकर नवाज शरीफ को दिया गया निमंत्रण वापस लेने का साहस दिखायेगी? संभवत: नहीं।
दरअसल दोनों देशों के अंतर्गत पिछले छह माह में घटी तमाम राजनीतिक और कूटनीतिक घटनायें सत्ता पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कवायद से प्रेरितरही हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के शासन में भारतीय सैनिकों का सिर काटा जाना, हैदराबाद में बम विस्फोट, जम्मू कश्मीर में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या और लखपत जेल में भारतीय कैदी बेगुनाह सरबजीत की हत्या, वहां के कट्टरपंथी ताकतों के इशारे पर घटित घटनायें हैं, जिसका मकसद पाकिस्तान की जनता को दर्शाना था कि पाकिस्तान की सियासत आज भी भारत विरोध की नींव पर टिकी है। भारत विरोध की इसी ताकत पर पी.पी.पी. ने सत्ता में वापसी का सपना देखा, जो चूर-चूर हो गया। पी.पी.पी. की पराजय यह तो सिद्ध करती है कि पाकिस्तान की जनता अब कट्टरपंथी ताकतों से मुक्ति चाहती है किंतु नवाज शरीफ कट्टरपंथियों के सामने नतमस्तक नही होंगे, इसकी कोयी गारंटी नही है। हालांकि नवाज शरीफ का भरसक प्रयास है कि वो दुनिया के सामने कट्टरपंथ से मुक्त अपना चरमपंथी चेहरा प्रस्तुत करें, दुनिया की वाहवायी लूट सकें। इस प्रयास में सच्चाई बहुत कम और दिखावा बहुत ज्यादा है, विशेषकर भारत राष्ट्र के संदर्भ में। भारत के संदर्भ में नवाज शरीफ को अभी अनेक अग्नि परिक्षाओं से गुजरना होगा। कश्मीर समस्या पर अपना पुराना नजरिया छोड़कर पाक अधिकृत कश्मीर को बिना शर्त भारत को सौंप भारत में मोस्ट वांटेड दुर्दांत आतंकवादी हाफिज सईद (26/11 मुंबई पर आतंकवादी हमले का मास्टर माइंड) सहित अन्य प्रमुख आतंकवादियों को भारत को बिना शर्त सौंपना, पाकिस्तान की सरजमीं से आतंकवाद के प्रशिक्षण शिविरों को ध्वस्त करना और भारत विरोधी सुर पर हमेंशा के लिये लगाम लगाना नवाज शरीफ के लिये सबसे कठिन इतिहास है। हम जानते हैं कि नवाज शरीफ इस इम्तिहान को पास करने में जरा भी रूचि नही दिखायेंगे।
वो जानते हैं कि ऐसा करने पर कट्टरपंथियों द्वारा उनकी हत्या की जा सकती है। पाकिस्तान का जन्म ही सांप्रदायिकता की नींव पर हुआ था। पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र है। इस्लाम में गैर इस्लामियों से तब तक लड़ते रहने का हुक्म है, जब तक वो इस्लाम पर अपना ईमान न कबूल कर ले। जो कबूल नही करता उसे हलाल (हत्या) करने वालों को खुदा की जन्नत में जगह मिलने का पैगाम इस्लाम का एक अमानवीय और क्रूर चेहरा है। इसी विचारधारासे प्रेरित पाकिस्तान अपने वजूद में आनें से लेकर आज तक भारत को इस्लाम के अधीन करने का असफल प्रयास करता रहा है। नि:संदेह नवाज शरीफ भी इसी परंपरा को आगे बढ़ायेंगे। भारत द्वारा समझौता एक्सप्रेस ट्रेन और अमन-ए-कारवां बस सेवा का परिचालन तथा लाहौर समझौता का सिलसिला तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार ने हमें कारगिल युद्ध के रूप में दिया। भले ही कारगिल युद्ध तत्कालीन फौजी जनरल परवेज मुशर्रफ की देन बताने का प्रयास किया जाता है किंतु अपने देश का प्रधानमंत्री होने के नाते नवाज शरीफ को उनकी जवाबदेही से मुक्त नही किया जा सकता। अतीत में भारत के साथ विश्वासघात करने और भारत की पीठ में छुरा भोंकने की हिमाकत करने वाले नवाज शरीफ को भारत आने का न्यौता देने में भारत सरकार ने जल्दबाजी दिखलायी, उसका हमें निकट भविष्य में भारी खामियाजा भुगतने के लिये तैयार रहना होगा।
जब-जब पाकिस्तान सरकार का कोई नुमाइन्दा भारत दौरे पर आया है, उसके तत्काल बाद भारत विरोधी गतिविधियां उसके माध्यम से तेज हुयी हैं। बेकसूर नागरिकों व सैनिकों को बेवजह शहीद होना पड़ा है। भारत सरकार का नवाज शरीफ को न्यौता देना पाकिस्तान की शह पर एक और भारत विरोधी घटना घटने की संभावना का संकेत दे रहा है। मेरे ख्याल से नवाज शरीफ को भारत बुलाना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है। भले ही भारत के राजनीतिक और कूटनीतिक क्षेत्रों में नवाज शरीफ को न्यौता भारत की सहृदयता का प्रतीक बन रहा है, किंतु हमारा अतीत हमारी सहृदयता और सद्भावना के बदले धोखा मिलने की दासतां से भरा पड़ा है। हमें पाकिस्तान से मित्रता नही, हमारे शहीद हुये सैनिकों और मारे गये बेकसूर नागरिकों का हिसाब चाहिये। जब तक नवाज शरीफ पाक अधिकृत कश्मीर, मोस्ट वांटेड आतंकवादी हाफिज सईद और दाउद इब्राहिम को भारत के हवाले नही करता, हमें नवाज शरीफ पर किसी भी कीमत पर भरोसा नही करना चाहिये। लेकिन भारत सरकार भरोसा कर रही है। नवाज शरीफ के नापाक कदमों से पवित्र भारत भूमि को अपवित्र करने और राष्ट्र की एकता-अखण्डता और नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालने की कवायद मात्र इसलिये हो रही है, ताकि भारत के मुसलमान को खुश किया जा सके। भारतीय मुसलमानों को खुश करने का मकसद उनके वोट हासिल करने से अधिक कुछ भी नही है। मुस्लिम तुष्टीकरण की ऐसी ही नीतियों से देश का बंटाधार किया जा रहा है। हम मुस्लिम विरोधी नही हैं लेकिन वोट हासिल करने के भारत सरकार को आत्मघाती कदम उठाने की इजाजत नही दी जा सकती। अखिल भारत हिन्दू महासभा नवाज शरीफ की भारत यात्रा का पुरजोर विरोध करती है। नवाज शरीफ ने भारत की धरती पर कदम रखा तो अखिल भारत हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता उन्हें काले झंडे दिखाकर उल्टे पैर पाकिस्तान लौटने की मांग करेंगे।
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