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Monday, February 14, 2011

स्थानिय पुलिस प्रशासन के कारण हिन्दू महासभा भवन संकट में

रविन्द्र कुमार द्विवेदी


अखिल भारत हिन्दू महासभा की धारा 26-बी के अनुसार महासमिति के लिये गये निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नही दी जा सकती। 14/01/2011 को चुनाव आयोग द्वारा दिये गये निर्णय को चक्रपाणी ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिस पर माननीय न्यायालय ने निष्पक्ष रूप से विषयवस्तु को जाने बिना आयोग के निर्णय को अपने तात्कालिक प्रभाव से स्थगित कर दिया। यह न्यायालय की निष्पक्षता पर प्रश्न-चिह्न है। न्यायालय के संपूर्ण विषयवस्तुओं को ज्ञात करने के उपरांत एवं सभी पक्षों को नोटिस देकर उनकी बातों को जानना आवश्यक था। उसके बाद कोई भी निर्णय माननीय न्यायालय लिया होता तो न्यायिक गरिमा का उत्कृष्ट प्रदर्शन होता।
सन् 1915 में पं0 मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय और स्वामी श्रद्धानंद के प्रयासों से देवभूमि हरिद्वार की पावन धरती पर विशाल हिन्दू महासभा के अधिवेशन के उपरांत अखिल भारत हिन्दू महासभा विशाल रूप में राष्ट्रीय स्तर पर उभरा। अखिल भारत हिन्दू महासभा को वीर विनायक दामोदर सावरकर, भाई परमानंद और डॉ0 बालकृष्ण सदाशिव मुंजे जैसे अनेंक महान हिन्दू विभूतियों के अथक परिश्रम से विशाल हिन्दू संगठन तैयार किया। प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासविहारी बोस, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, करतार सिंह सराभा, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और इसके समवर्ती तमाम क्रांतिकारी हिन्दू महासभा के अथक परिश्रम की देन है, जिनके कारण राष्ट्र को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त कराने में सफलता प्राप्त हुई और 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। हिन्दू महासभा की यह महान गौरवशाली परंपरा हिन्दू समाज और समस्त भारतवासियों के हृदय में विशेष रूप से अंकित हो गयी। दुर्भाग्य से वर्तमान में चक्रपाणी और चन्द्रप्रकाश कौशिक के स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते हिन्दू महासभा का मूल अस्तित्व खतरे में है।
ब्रिटिश सरकार से सन् 1933 में नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर चिरस्थायी पट्टे पर प्राप्त जमींन को देवता स्वरूप भाई परमानंद ने प्राप्त की। हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय कार्यालय और देश-विदेश में रहने वाले करोड़ों हिन्दुओं के आस्था के केन्द्र जिस मंदिर (भवन) का निर्माण करवाया था, उस मंदिर की लीज वाली जमीन भी खतरे में पड़ गई है। चक्रपाणि और कौशिक की स्वार्थी प्रवृत्ति ने हिन्दू महासभा भवन की इमारत का पूर्ण व्यवसायीकरण कर दिया है, स्थानिय पुलिस प्रशासन के दो एस.एच.ओ. रामकृष्ण यादव एवं रमेश चंद्र भारद्वाज के कुकृत्यांे का संगठन बहुत बड़ी कीमत चुका रहा है। इन दो एस.एच.ओ. की सहायता से चंद्र प्रकाश कौशिक व चक्रपाणि द्वारा अवैध गतिविधियां अनवरत चल रही हैं, ये भारत सरकार के केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के संज्ञान में आ चुका है। मंत्रालय व्यवसायीकरण के कारण भवन को अधिग्रहित कर सकता है या सील लगा सकता है, मंदिर (भवन) की जमीन की लीज को रद्द करके किसी भी समय उसे अधिग्रहीत करने की कार्रवाई कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो वो दिन हिन्दू समाज के लिये काला अध्याय सिद्ध होगा, जिसे रोकने के लिये हिन्दू महासभा के वास्तविक हिन्दू महासभाई हिन्दू महासभा के संविधान में वर्णित धाराओं के आधार पर प्रतिबद्ध हैं।
चक्रपाणि का वास्तविक नाम राजेश श्रीवास्तव है और वो हिन्दू महासभा के सदस्य तक नही हैं। चक्रपाणि ने 19 दिसंबर 2005 की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ग्वालियर बैठक में स्वयं स्वीकार किया था कि उन्होंने जिस व्यक्ति को अपना सदस्यता शुल्क दिया था, उसने उस शुल्क को केन्द्रीय कार्यालय में जमा नहीं करवाया। चक्रपाणि ने पुनः सदस्यता ग्रहण नही की, जिसके आधार पर तत्कालिन राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश चन्द्र त्यागी द्वारा चक्रपाणि को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाना स्वतः असंवैधानिक घोषित हो जाता है। इतना ही नहीं, 25 जुलाई, 2006 को दिल्ली के 7, शंकराचार्य मार्ग, सिविल लाइन, दिल्ली-110054 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश चन्द्र त्यागी की अध्यक्षता में आहूत बैठक में सतीश चंद्र मदान और मदन लाल गोयल (दोनों तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) के दबाव में चक्रपाणि को राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया गया, वो भी हिन्दू महासभा के संविधान के विरूद्ध असंवैधानिक सिद्ध होता है। इस बैठक में चक्रपाणि की कथनी और करनी में अंतर भी स्पष्ट नजर आया।
19 दिसंबर 2005 की ग्वालियर बैठक में चक्रपाणि ने स्वयं कहा था कि राष्ट्रीय बैठक में दूसरे दलों से जुड़े नेताओं को न बुलाया जाये, किन्तु 25 जुलायी 2006 की दिल्ली बैठक में वो स्वयं कांग्रेस की इन्दिरा तिवारी को अपने साथ बैठक में लेकर आये अपने ही सुझाव को धूल-धूसरित कर दिया। चक्रपाणि का निर्वाचन इस संदर्भ में भी असंवैधानिक माना जा सकता है कि 4 जून 2006 की मेरठ बैठक से ही हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद विवादित हो गया था।
इस विवाद के मध्य सन् 2007 में चक्रपाणि नें इन्दिरा तिवारी के माध्यम से भारतीय निर्वाचन आयोग को भ्रमित करने वाली जानकारियां प्रदान की। भ्रमित जानकारी के आधार पर निर्वाचन आयोग वास्तव में भ्रमित हो गया और 7 अगस्त 2007 को चक्रपाणि को राष्ट्रीय अध्यक्ष दर्शाता एक पत्र निर्वाचन आयोग द्वारा प्रेषित किया गया। इससे पहले 6 मार्च, 2007 को दिनेश चन्द्र त्यागी और संगठन से निष्कासित छद्म राष्ट्रीय अध्यक्ष (स्वयंभू) चन्द्र प्रकाश कौशिक ने निर्वाचन आयोग को पत्र प्रेषित किया था, जिसमें दोनों ने परस्पर विवाद को समाप्त करने तथा 4 जून, 2006 से पहले की निर्विवाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी को स्वीकार करने की घोषणा की थी। संभवतः 7 अगस्त, 2007 के अपने पत्र में निर्वाचन आयोग उक्त घोषणा को संज्ञान में लेना भूल गया।
दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर वाद(सी.एस.डब्ल्यू.5) नं0 837/2007) का तथ्य भी निर्वाचन आयोग से छिपाकर चक्रपाणि ने आयोग को गुमराह किया, किन्तु निर्वाचन आयोग के संज्ञान में उच्च न्यायालय के बाद (चक्रपाणि को चुनौती देनें वाली याचिका) को संज्ञान में लाया गया तो निर्वाचन आयोग ने चक्रपाणि को प्रेषित 21 अगस्त 2007 के पत्र में उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के अपने पिछले पत्र को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया।
चक्रपाणि और चन्द्र प्रकाश कौशिक अपने आपको वास्तविक अध्यक्ष बताते रहे और हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं के साथ पूरे हिन्दू समाज को गुमराह करते रहे। हिन्दुओं के आस्था के पवित्र मन्दिर (भवन) में सन् 2006 से पूर्व सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक कार्यक्रमों तथा वीर सावरकर, भाई परमानंद, वीर बाल हकीकत राय, रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई जैसे हिन्दू समाज के महान वीरों और वीरांगनाओं की पुण्यतिथियां मनायी जाती थी। हिन्दू महासभा भवन हमेशा कार्यकर्ताओं के चहल-पहल से आबाद रहता था। किन्तु नेतृत्व विवाद आरंभ होने के बाद मन्दिर(भवन) से धीरे-धीरे कार्यकर्ताओं का कोलाहल लुप्त हो गया। वहां कार्यक्रमों और हिन्दू समाज की गतिविधियों के बदले सन्नाटा छा गया। हिन्दू महासभा भवन का इस्तेमाल व्यवसायिक गतिविधियों में होनें लगा, जो हिन्दू आस्था और भावनाओं के साथ घातक खिलवाड़ था।
मन्दिर(भवन) में स्थापित वीर सावरकर, भाई परमानंद और बाल हकीकत राय की प्रतिमाओं की गहरी उपेक्षा और समुचित देखरेख के अभाव में दोनों पक्षों के सच्चे हिन्दू महासभाइयों की आत्मा कराह उठी और उन्होंने हिन्दुओं के एकमात्र हिन्दू राजनीतिक दल अखिल भारत हिन्दू महासभा और उसके पवित्र मन्दिर(भवन) को दोनों पक्षों के स्वार्थ से मुक्त कराने का संकल्प लिया।
राह कितनी भी कठिन हो, लेकिन बुलंद हौसले कठिनाइयों को बौना साबित कर देते हैं। इसका आभास 8 सितंबर 2007 को हुआ, जब संस्था के विवादों को सुलझाने और स्वार्थी हिन्दू महासभाइयों से हिन्दू महासभा को मुक्त कराने के लक्ष्य पर हिन्दू महासभा के संविधान की के अंतर्गत महासमिति के दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों की बैठक आहूत हुई। धारा 16 एफ में पांच प्रदेश अध्यक्षों अथवा 30 महासमिति के सदस्यों की मांग पर ऐसी बैठक बुलाये जाने का प्रावधान है। बैठक में पं0 नंदकिशोर मिश्रा की अध्यक्षता में पांच प्रदेशों के सात प्रतिनिधियों की संवैधानिक उच्चाधिकारी समिति का गठन किया गया। समिति को सभी सांगठनिक विवादों को सुलझाने की स्वतंत्र शक्तियां प्रदान की गई।
यह सारी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं रही। इस बैठक को असंवैधानिक घोषित करते हुये चक्रपाणि ने बैठक पर रोक लगाने की दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिन्दू महासभा के की धारा 16 एफ का संज्ञान लेते हुये बैठक को संवैधानिक मानते हुये रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इतना ही नहीं एक अन्य मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 22 अप्रैल, 2008 के एक अंतरिम आदेश में भी समिति के अस्तित्व को मान्यता दी। दो जुलाई 2008 को नई दिल्ली के गढ़वाल भवन में उच्चाधिकार समिति की देखरेख में राष्ट्रीय महासमिति की आहूत बैठक में श्रीमती हिमानी सावरकर को अखिल भारत हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। 4 जुलाई, 2007 को संपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया को निर्वाचन आयोग में दर्ज करा दिया गया। उसके बाद देश और राज्यों में हुये सभी चुनावों में हिन्दू महासभा नें अपने उम्मीदवार उतारे और हिमानी सावरकर के साक्ष्यांकित ए और बी फार्म को निर्वाचन आयोग ने स्वीकार किया। यह हिन्दू महासभा के संविधान की धारा 16 एफ के अंतर्गत संगठित हिन्दू महासभा की एक बड़ी विजय रही।
बाद में 20 नवंबर, 2010 को लखनउ में श्री दिनेश चंद्र त्यागी की अध्यक्षता में संपन्न राष्ट्रीय महासमिति की बैठक में सभी पक्षों के महत्वपूर्ण सदस्यों की उपस्थिति में राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग कर एक उच्चाधिकार समिति का गठन किया गया। उच्चाधिकार समिति का अध्यक्ष कमलेश तिवारी को बनाया गया। प्रखर हिन्दू नेता डॉ0 संतोष राय की अध्यक्षता में स्वागत समिति का गठन किया गया। स्वागत समिति के अध्यक्ष का दायित्व है नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनावी प्रक्रिया को पूर्ण करने का(चुनाव करने का)। नई कार्यकारिणी के चुनाव होनें तक उच्चाधिकार समिति को सभी शक्तियां प्रदान की गई हैं। हिन्दू महासभा के संविधान के अंतर्गत वर्तमान में कोई भी राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रीय पदाधिकारी नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय में श्रीराम जन्म भूमि विवाद की पैरवी करना और मन्दिर(भवन) को मुक्त करवाकर वहां से पुनः राष्ट्रवादी स्वर गुंजायमान करना संगठन का पुनीत कर्तव्य है। स्वागत समिति की अध्यक्षता में निर्वाचित अध्यक्ष एवं गठित कार्यकारिणी ही वैधानिक कार्यकारिणी मानी जायेगी।
हिन्दू महासभा का संविधान ही सर्वोपरि है, जिसे न्यायालय को मान्य होना चाहिये और निर्वाचन आयोग को भी। हिन्दू समाज और हिन्दुत्व के प्रति आस्थावान भारतीय समाज के प्रति सच्चा सम्मान यही होगा कि सभी पक्ष इस निर्वाचन प्रक्रिया का हिस्सा बनकर सभी विवादों को हमेशा के लिये खत्म करें और अखिल भारत हिन्दू महासभा को भगवा ध्वज के नीचे भव्य और सशक्त भारत के निर्माण का संकल्प लें।

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